KRISHI SWARAJ कृषि स्वराज
आज के दौर में हम विकास की अंधी दौड़ में शामिल हैं। हम अपने जीवन और प्रकृति के बीच के अन्तर्सम्बन्धों को समझे बिना जी रहे हैं। इससे हमारा स्वास्थ्य बिगड़ रहा है । हमारी परम्परिक व्यवस्थाओं में प्रकृति के साथ जीने की कला समाहित थी जो हमें स्वस्थ रखती थी। आज स्वस्थ जीवन के लिए फिर से उस ओर ध्यान देने का समय आ गया है।पूर्व की प्रकृति प्रेमी व्यवस्थाओं को पुनः स्थापित करने के लिए जैविक खेती और उत्पादों पर जोर देना जरूरी हो गया है।
Thursday, October 22, 2020
Tuesday, May 12, 2020
जाड़े में जिमिकंद
शास्त्रीय मतानुसार जिमिकंद एक अत्यंत उपयोगी जड़ है. स्वाद और उपयोगिता का विस्तार भी बड़ा है.
- Time For Using : दीवाली से होली तक इस कंद के विविध उपयोग करने ही चाहिए.
- केवल एक चेतावनी है. खाज, कोढ़ और एक्जिमा के रोगियों को इसके उपयोग से विशेष परहेज रखना चाहिए.
आजकल के मौसम में खड़े मसाले के जिमिकंद और मटर का रसा राेगन जोश का पयार्य होना चाहिए. हमारी सलाह के मुताबिक छोटा परिवार भी आधा किलो जिमिकंद और कम से कम पाव भर कचिया मीठी मटर के दाने अवश्य रचाये.
आधा किलो जिमिकंद को विधिवत छील कर टुकड़े बनाने में न्यूनतम 70-80 ग्राम कूड़ा तो अवश्य निकल जायेगा. इक सार टुकड़े काटें और इमली या अमचूर के पानी में एक घंटा अवश्य भिगोकर रखें वर्ना उसकी खराश बची रह सकती है जो सब्जी के स्वाद को पूरी तरह से नष्ट कर देगी.
इस तरह खटाई में भीगे जिमिकंद को अच्छी तरह धोकर छलनी में निचुड़ने के लिए रख दें. अब छील कर चार गांठ लहसन की महीन चटनी तैयार करें. उसी सिल पर दो मध्यम आकार के प्याज भी पीस लें. हल्दी, धनिया आैर लाल मिर्च भी भिगो कर पीस लें. तेल हो जाये तो उसमें लहसन की चटनी भूननी शुरू करें तब सूक्ष्म मात्रा में साबुत गर्म मसाला (चार लौंग, 8 काली मिर्च, दो छिलका बड़ी इलायची, आधा इंच टुकड़ा दाल चीनी) लहसुन गुलाबी हो जाये तो उसमें प्याज की चटनी डाल दें. प्याज भी भुन जा तो मिर्ची का घोल डाल कर भूनें. इसके बाद हल्दी, धनिया, अदरक की चटनी, जिमिकंद के टुकड़े, मटर के दाने, सब एक साथ डाल कर अच्छी तरह भूनें. इस तरह सब माल जब तेल छोड़ने लगे ताे उसमे आवश्यकतानुसार पानी लगा कर नमक डाल दें.
इस मिश्रण को मंदी आंच पर 25 से 30 मिनट पकने दें. आंच से उतारने से पहले इतना अवश्य परख लें कि जिमिकंद अच्छी तरह मुलायम हो गया है या नहीं. एक चुटकी गर्म मसालों का प्रयोग कर सकते हैं.
यह एक ऐसा सालन है जिसे चावल में सान कर भी प्रयोग कर सकते है और सादी रोटी के साथ लगा कर भी. जिमिकंद के शाकाहारी कबाब भी शाही व्यंजन में गिने जाते हैं. ऐसे कबाब किसी भी शाही दावत की रौनक बड़ा सकते हैं.
जिमिकंद छील कर टुकड़े बनाने और खटाई के पानी में खराश धोने तक विधि समान ही है. उसके बाद जिमिकंद के टुकड़े उबाल कर छलनी में सूखने के लिए रख दें. बाकी तैयारी में स्वादानुसार अदरक, हरी मिर्च और लहसुन की चटनी बना लें. इसे जिमिकंद की उबली पीठी में अच्छी तरह मिला लें. यदि आधा किलो जिमिकंद है तो इसमें करीब 150 ग्राम चने का सत्तू मिला ले और कम से कम 50 ग्राम सूखी मेथी या 150 ग्राम हरि मेथी के बारीक कटे पत्ते. इस सब तैयारी के बाद स्वादनुसार नमक और अनारदाने का चूर्ण अवश्य मिला लें. बस अब गोल-गोल टिकिया बनाए और तवे पर आलू की टिकिया की तरह पर्याप्त तेल में तल लें.
आलू फिंगर
इससे अतिरिक्त जिमिकंद के तले हुए टुकड़े बिल्कुल आलू फिंगर की तरह मसाला लगा कर चाय के साथ नोश फरमाये जा सकते हैं. जिमिकंद का चोखा यानी भरता भी बना सकते हैं.
किंतु सर्वाधिक उपयोगी एवं रोचक व्यंजन तो जिमिकंद की पानी या तेल वाली कांजी है. पानी की कांजी तो बिल्कुल सरल है. उबले हुए टकुड़ों को साधारण राई के पानी में डालकर कांच के बर्तन को धूप में रख दे. तीन से चार दिन में कांजी तैयार हो जायेगी.
जिमिकंद का राई का अचार डालना हो तो टुकड़ों को थोड़ा बारीक काटना चाहिए. इन टुकड़ों को तेल में सूखी सब्जी की तरह छौंक दीजिए. सब्जी ठंडी हो जाये तो उसमें पिसी राई का चूर्ण मिला कर बर्नी में भर दें. एक हफ्ते दस दिन में अचार तैयार हो जायेगा. यदि यह आचार तेल में डूबा रहेगा तो छह महीने भी यथावत बना रहेगा.
- सेहत, स्वाद और संस्कृति (अरुण कुमार पानीबाबा के भोजन और स्वास्थ्य संबंधी लेखों के संचयन से साभार )
Wednesday, May 6, 2020
पानीबाबा के बारे में
अरुण कुमार पानीबाबा के भोजन और स्वास्थ्य संबंधी लेखों का संचयन
पानीबाबा के बारे में
अरुण कुमार का जन्म दो सितंबर 1941 को दिल्ली में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1965 में स्नातक किया था। वे एक पर्यावरणविद्, समाजशास्त्री और राजनीतिक चिंतक थे। उन्होंने सन् 1985 से 1987 के बीच राजस्थान के मरुस्थल में पानी मार्च करते हुए जल दर्शन को समझा और तभी से पानीबाबा कहलाए।
गंगा को पुनः अवतरित करने के लिए गाय, गंगा, हिमालय बचाओ अभियान चलाया। मारवाड़ के क्षेत्र में पड़े अकाल के दौरान मरुस्थल को समझा तथा पानी के प्रति चेतना जगाने के लिए पानी चेतना समिति का गठन किया। गांव-गांव में पानी के संरक्षण की अलख जगाने के लिए तीन सालों तक पानी मार्च किया। यूनाइटेड नेशन यूनीवर्सिटी, टोकियो के लिए सामाजिक शोध कार्य किया।
सन् 1988-89 में सेंटर फार स्टडीज, सूरत के फेलो रहे और अकाल सर्वेक्षण कार्य संपादित किया। अकाल की विभीषिका और पानी की समस्याओं को समझने के लिए 1990 में मरुस्थल विज्ञान भारती की जोधपुर में स्थापना की। इसके अतिरिक्त वे अनेक समानधर्मी संस्थाओं में सलाहकार और प्रेरक के रूप में जुड़े रहे।
उन्होंने भारतीय विज्ञान एवं तकनीकी संस्थान (आइआइटी) दिल्ली, पेट्रियोटिक पीपील आरिएंटेड साइंस एंड टेक्नोलॉजी, एशियन सोशल फोरम, ट्रिपल आइटी हैदराबाद और आइआइटी दिल्ली के वैल्यू एजुकेशन विभाग में वर्नाकुलर विज़डम के अतिथि व्याख्याता रहे।
for more info - www.sadedind.wordpress.com (menu resource person)
Wednesday, July 31, 2019
KRISHI SWARAJ:
कृषि स्वराज –एक सामाजिक उद्यम है, जो किसानों/एनजीओ के साथ मिलकर काम करता है। उनके सामान को, उनके नाम से एवं उनके लोकलस्थानीय ब्रांड के साथ बाजार में लेकर आता हैं। कृषि स्वराज से जुड़े सभी किसान प्राकृतिक खेती करते है उसमें जैविक खेती, जीरो बजट खेती, वैदिक खेती, जैसे रूप शामिल है। कृषि स्वराज के उत्पादों में हानिकारक विष पदार्थ की रासायनिक कीटनाशक, हार्मोंस, सामान को स्टोर में रखने के लिए रासायनिक परिरक्षको का उपयोग, किसी भी स्तर पर नहीं होता है, जिससे एक ओर भूमि की उर्वरता बनाये रखने में सहायता मिल रही है तो दूसरी ओर किसानों को उनकी उपज का अधिकतम मूल्य उपलब्ध कराने में मदद हो रही है।
कृषि स्वराज –एक सामाजिक उद्यम है, जो किसानों/एनजीओ के साथ मिलकर काम करता है। उनके सामान को, उनके नाम से एवं उनके लोकलस्थानीय ब्रांड के साथ बाजार में लेकर आता हैं। कृषि स्वराज से जुड़े सभी किसान प्राकृतिक खेती करते है उसमें जैविक खेती, जीरो बजट खेती, वैदिक खेती, जैसे रूप शामिल है। कृषि स्वराज के उत्पादों में हानिकारक विष पदार्थ की रासायनिक कीटनाशक, हार्मोंस, सामान को स्टोर में रखने के लिए रासायनिक परिरक्षको का उपयोग, किसी भी स्तर पर नहीं होता है, जिससे एक ओर भूमि की उर्वरता बनाये रखने में सहायता मिल रही है तो दूसरी ओर किसानों को उनकी उपज का अधिकतम मूल्य उपलब्ध कराने में मदद हो रही है।
कृषि स्वराज, किसानों के नाम
के साथ/ किसानों के लिए काम कर रही स्वयंसेवी संस्थाओ के नाम के साथ, उनके
स्थानीय ब्रांड के नाम के साथ, उनके सामान को बाज़ार की मुख्यधारा से
जोड़ने का कार्य कर रहा है इसके अंतर्गत उनके सामान को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे
अमेज़न में लाना, स्टोर तक पहुच बनाना, रसोई के लिए
उपलब्ध करवाना-जैसे कार्य शामिल है।
वर्तमान में कृषि स्वराज, चार
राज्यों (उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं
उत्तर प्रदेश) में कार्य कर रहा है। पांच स्वयंसेवी संस्थाओ के माध्यम से लगभग 1000
किसान परिवारों के जीवन और आजीवका के उन्नयन के लिए प्रयासरत है।
कृषि स्वराज, अपने उत्पादों
को उचित मूल्य में, बाज़ार में उपलब्ध करवा रहा है, ताकि
अधिक से अधिक जन को “अच्छा उगाओ एवं अच्छा खाओ” मुहीम
में शामिल किया जा सके। कृषि स्वराज, किसानों की मेहनत और उनके नाम को,
अधिक
से अधिक लोगों तक लाने का प्रयास कर रहा है। कृषि स्वराज की वेबसाइट www.krishiswaraj.com
पर
सभी जानकारी उपलब्ध है।
अधिक जानकारी के लिए कृपा हमारी वेबसाइट –
WWW.KRISHISWARAJ.COM पर लॉन्गइन करे |
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